Wednesday, 7 December 2011

सदा हालात से


सदा  हालात  से  जम  कर  लड़ा  हूँ |
अभी  भी  दूर  मंज़िल  से  खडा  हूँ ||

तुम्हारे  सामने  मैं   हार   कर  भी  |
समझता  हूँ  हिमालय  से  बड़ा  हूँ ||

हवा  ने  लाख  रुख़  बदले  हों  चाहे |
मगर  मैं  भी  इरादों  पर   अड़ा  हूँ ||

नहीं  आते  वो  जब  तक  पास  मेरे |
उखड्ती  सांस  को   थामे   पड़ा   हूँ ||

अभी तक वो किया जो मन में ठाना |
यूँ  भी  मैं  आदतन   ज़िद्दी  बड़ा  हूँ  ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी    

Tuesday, 6 December 2011

वो मेरी बांह का


वो मेरी  बांह का तकिया बना  कर |
अचानक सो गया पहलू में आ कर ||

चलो  दीदार  का  मौक़ा    है  अच्छा |
मेरे  आँगन  में  बैठा  चाँद  आ  कर ||

सितारों  ने  शिकायत  की  ज़मीं  से |
हमारा  चाँद  क्यूं  रक्खा  छुपा  कर ||

ज़रा सा प्यार था शबनम से अपना |
उसे  भी  ले  गया  सूरज   उड़ा  कर ||

हमारी  है कहाँ जुरअत  जो  उनकी |
वफ़ा  को  देख  लेते   आज़मा  कर ||

बड़ा    बदख़ू     हमारा    है    पडौसी |
कभी हँसता नहीं है खिलखिला  कर ||

अना पर  जब   कभी भी आँच  आई |
मैं अक्सर रह गया हूँ कसमसा कर ||

तरददुद   में   हमेशा    ही   रहा  हूँ |
क्यूँ बेचे ज़हर चींजों में मिला कर ||

ज़मानत आज शायद मिल  गयी है |
मिला है आज क़ातिल मुस्कुरा कर ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी   

Monday, 5 December 2011

आप जब से


आप   जब   से   जुदा   हो   गए |
ख़ाब   भी   गुमशुदा    हो   गए ||

जग से नाम -ए -वफ़ा मिट गया |
जब   से  तुम   बेवफ़ा   हो  गए ||

हमने  तुम  को  ख़ुदा  क्या  कहा |
तुम  तो  सचमुच  ख़ुदा  हो  गए ||

रोज़    दुशवारियाँ     बढ़    रही |
चैन   के   दिन   हवा   हो   गए ||

आज   के   इस   नए  दौर   में | 
लोग अब क्या से क्या हो गए ||

सब   के  नुस्ख़े  ही  बाज़ार  में |
दर्द -ए -दिल  की  दवा हो गए ||

डोर  के  बिन  हो  जैसे  पतंग |
हम  तुम्हारे   बिना   हो  गए ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Thursday, 23 June 2011


सख़्त  थोड़ी ज़ुबाँ  है  तो क्या है ?
आदमी   वो  मगर  काम  का है ||

देर   तक    वो    मुझे  देखता  है |
मेरे    बारे   में  क्या  सोचता  है ?

खोल  कर  माल देखा  तो नकली |
चिपका   लेबल   बड़े नाम का है ||

झूठ   का   कर   रहा  ये  दिखावा |
सर ज़मीं तक झुका कर मिला है ||

ज़हर  जिसमे  हसद    का  भरा  है |
वो   किसी   को  नहीं  छोड़ता  है ||

साँप   तो    छेड़ने   पर  ही  काटे | 
आदमी    हर   समय  काटता  है ||

जान   अटकी   हुई   है   उसी  में |
बेटा   लेकर  के  बाइक  गया  है ||

है   पडौसी   की  आदत  बुरी  ये |
घर  से  निकलो तभी टोकता है ||

भूलने की   अजब उसकी आदत |
नाम  बस  मेरा  ही  भूलता  है ||

                                                      डा०  सुरेन्द्र सैनी 
चाँद तारों की   महफ़िल सजी है |
आ  भी  जाओ तुम्हारी कमी है ||

चाँद   की    मेज़बानी    में  पीलो |
चांदनी    रात    साक़ी   बनी  है ||

सोचता   है    मुझे   अजनबी    हूँ |
उस सितमगर की ये दिल्लगी है ||

उनसे उनकी  शिकायत तो कर  दी |
या   ख़ुदा क्या  अजब  बेख़ुदी  है ||

बाँट  दो  सब  को  आकर  उजाले |
देखिये   हर   तरफ    तीरगी    है ||

जी  रहा  हूँ मैं  फज़्ले  ख़ुदा  पर | 
कुछ  दुआओं  ने  इमदाद की है ||

झूठ   किसने   उड़ा  दी  ख़बर ये ?
मैंने  कहनी  ग़ज़ल  छोड़   दी है ||

                                                          डा० सुरेन्द्र सैनी 

बेबसी    बेकली      बेकसी      है |
क्या इसी को  कहूँ ? जिंदगी  है ||

आ गया हूँ मैं ये किस जगह पर | 
हर   कोई    दीखता   अजनबी  है ||

ठीक   से   घर   अमीरों  के  बैठो |
इनका  सोफा  बड़ा    कीमती  है ||

आँख   उससे   मिलाना  सम्भल  के |
वो    नज़र   का  बड़ा  पारखी  है ||

मैंने   बेटी   को  दी  है  लियाक़त |
पर  पडोसी  ने  बस  कार दी  है ||

मेरी   क़श्ती   को    देखा    उभरते |
मौज   फिर   आके टकरा गई है ||

वासना  है   हवस   और   वहशत |
नाम इस का ही बस आशक़ी है ||

                                                      डा० सुरेन्द्र सैनी 

आजकल  लोगों  में  अपना  हो  रहा  चर्चा   बहुत |
लोग दानिशमंद हैं या फिर मैं ही हूँ अच्छा बहुत ||

दिल  लगाकर  आपसे  मैं  मुश्किलों में   पड़ गया |
लोग  कहते  हैं  कि  अब मैं  उड़  रहा ऊँचा बहुत ||

मेरे  नग़में   मेरे  छोटे  पन  में  दब  के  रह  गए | 
वो रिसालों में छपा क्या उसका था    रुतबा बहुत ?

अब ज़रा  सख़्ती  दिखाने   का सही  पल आगया |
सामने  उनके  किया  हमने   अरे    सजदा  बहुत ||

हैं  नहीं  यूँ  हर  किसी  से  ठीक  यें   नज़दीकियाँ |
फ़ासला   भी  बीच  में  रक्खा  करो  थोड़ा  बहुत ||




तेरे  मेरे  तेरे  बीच  में  बस  एक यही तो फर्क है |
मैं  तुझे  चाहा  बहुत  पर  तू  ने दिल तोडा बहुत ||

                                                                                  डा० सुरेन्द्र सैनी 
मुठ्ठी   में  कोई   आग   छुपा  कर  तो  देखिये |
दिल में किसी दिलबर को बसा  कर तो देखिये ||

हमने  पिए  हैं  अश्क़   तो   पी  लेगे  ज़हर  भी |
हाथों  से  अपने   आप  पिला  कर  तो  देखिये ||

आ   जायेगा   दातों    में   पसीना   ज़नाब   के |
बिगड़े  हुए  दिलबर  को  मना  कर   तो देखिये ||

उम्मीद  का  दामन   कभी     छोडूगां   मैं  नहीं |
चट्टान  से  जिगर   को हिला  कर तो देखिये ||

गठरी  गु़नाह   की  कर  तो ली  तैयार  आपने |
कितना है  इसमें  बोझ    उठा कर तो देखिये ?

                                                                            डा० सुरेन्द्र सैनी 


किस   तरफ    से   इशारे  हुए |
आप   दुश्मन    हमारे      हुए ||

मुझको     देकर   फ़रेब-ए-वफ़ा |
फूल    भी    तो    शरारे    हुए ||

छोड़ दी जिसने शर्म -ओ -हया |
उसके     रौशन   सितारे    हुए ||

ज़ीस्त  क्या  है  पता तब चला |
मौत    के   जब   नज़ारे    हुए ||

है   सियासत  में  इतना  मज़ा |
सारे     रिश्तें    किनारे     हुए ||

                                                         डा० सुरेन्द्र सैनी 

जो रौनक - ए - महफ़िल थी वो जिस पल चली गई |
उस   पल   से    क़ायनात   की  हलचल  चली  गई ||

जाहिद    हुए     सरकार   में    शामिल   तो    देखिये |
हम    मैकशों    के   हाथ   से   बोतल   चली    गई ||

ढेरों    इनआम    मिल     गए सय्याद    को    मगर |
इंसाफ़     मांगती     हुई     बुलबुल      चली     गई ||

ग्रंथों   में   छापी   जा   रही   कौवों  की  कावं-कावं |
गुमनाम     कूकती     हुई    कोयल    चली      गई ||

शाम - ओ- सहर    सिसक   रहीं   रोती    रही   शफ़क़ |
देकर    जिन्हें    उदासियाँ   वो   कल   चली    गई ||

                                                                                    डा० सुरेन्द्र सैनी 

एक   था  वो   हमारा ज़माना |
एक  है  ये  तुम्हारा   ज़माना ||

पार   हद सब  किये जा रहा है |
ज़ुर्म  की   आज   सारा  ज़माना ||

मुफ़लिसी में हुआ क्या वो पैदा |
मुफ़लिसी  में गुज़ारा    ज़माना ||

उसको   सूली  चढ़ाया   गया  है |
जिस किसी ने   सुधारा  ज़माना ||

इसको  देखोगे  जैसी   नज़र से |
देगा   वैसा   नज़ारा     ज़माना ||

आपकी    मुस्कुराहट  पे   करदूं |
मैं  निछावर  ये  सारा  ज़माना ||

क्या  कभी   वो घडी आ सकेगी |
ज़मज़मासंज   हो सारा   ज़माना ||


ज़मज़मासंज -- गीत गाता हुआ

                                                         डा० सुरेन्द्र सैनी 

वादे     लेकर     के     सारे    बेकार   के |
दर   से   झोली   भर  लाये  सरकार  के ||      

मुफ़लिस घर  का   खा़विन्द तो   मजबूर है |
कैसे   बेग़म   को   दे  दो  पल  प्यार  के ||

कैसे - कैसे   लीडर   चुन    कर  भेजे    हैं |
वोटर   शायद   चूक  गए  इस   बार  के ||

होटल  जाने   पर  आमादा    बच्चों  को |
मैंने   समझाया  दो    थप्पड़   मार   के ||

मस्ज़िद   कोई   टूटी  है  इस  पार    यदि |
मंदिर   भी    तो    टूटें   हैं  उस  पार  के ||

ख़ुद का हाल - ए - दिल कहना है नादानी |
घर  पे  जब  पहुंचे  हो    इक  बीमार  के ||

चारागर  ने    फल   खाना    बतलाया    है |
पर  क्या हैं  अब  अच्छे  फल   बाज़ार के ||

                                                                        डा० सुरेन्द्र सैनी 

ज़ख़्म कितने  खा चुके  उनको  गिनाते  जाइए ?
और    अपने   हाल    पे  आँसूं  बहाते   जाइए ||

जाते - जाते इक  ग़ज़ल  हमको सुनाते  जाइए |
जिंदगी का सच  ज़रा   सबको   बताते  जाइए ||

आज की तहज़ीब है बस रास्ता मिलने के  बाद |
रहबरों के नक़्श - ए -पाँ ख़ुद ही मिटाते  जाइए ||

इक न इक दिन आपकी सरकार बन ही जायेगी |
वोटरों   को   बस   ज़रा   दारु   पिलाते    जाइए ||

याद   क्या   कोई   करेगा     आपकी   क़ुर्बानियाँ ?
आप तो  बस  सर  झुकाकर  सर   कटाते  जाइए ||

कान   में   डाले   रुई   सरकार   बैठी   है    यहाँ |
बीन   अपनी   भैंस   के   आगे   बजाते   जाइए ||

                                                                              डा० सुरेन्द्र सैनी 

अपने अख़लाक़ से जुदा होकर |
क्या  मिलेगा  तुझे बड़ा होकर ?

आदमीयत न  पास  है  जिसके |
पुजना  चाहे  वही ख़ुदा  होकर ||

ख़ूब  इनआम  है  वफ़ा  का ये |
सब से मैं रह गया बुरा होकर ||

चोट  खाए  हुओं  पे  हँसता  है |
तू भी  तो देख आशना  होकर ||

रोज़  की  वारदात क़ातिल की |
रह गई एक सिलसिला होकर ||

                                                        डा० सुरेन्द्र सैनी