वो मेरी बांह का तकिया बना कर |
अचानक सो गया पहलू में आ कर ||
चलो दीदार का मौक़ा है अच्छा |
मेरे आँगन में बैठा चाँद आ कर ||
सितारों ने शिकायत की ज़मीं से |
हमारा चाँद क्यूं रक्खा छुपा कर ||
ज़रा सा प्यार था शबनम से अपना |
उसे भी ले गया सूरज उड़ा कर ||
हमारी है कहाँ जुरअत जो उनकी |
वफ़ा को देख लेते आज़मा कर ||
बड़ा बदख़ू हमारा है पडौसी |
कभी हँसता नहीं है खिलखिला कर ||
अना पर जब कभी भी आँच आई |
मैं अक्सर रह गया हूँ कसमसा कर ||
तरददुद में हमेशा ही रहा हूँ |
क्यूँ बेचे ज़हर चींजों में मिला कर ||
ज़मानत आज शायद मिल गयी है |
मिला है आज क़ातिल मुस्कुरा कर ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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