सदा हालात से जम कर लड़ा हूँ |
अभी भी दूर मंज़िल से खडा हूँ ||
तुम्हारे सामने मैं हार कर भी |
समझता हूँ हिमालय से बड़ा हूँ ||
हवा ने लाख रुख़ बदले हों चाहे |
मगर मैं भी इरादों पर अड़ा हूँ ||
नहीं आते वो जब तक पास मेरे |
उखड्ती सांस को थामे पड़ा हूँ ||
अभी तक वो किया जो मन में ठाना |
यूँ भी मैं आदतन ज़िद्दी बड़ा हूँ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी